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जरा॑बोध॒ तद्वि॑विड्ढि वि॒शेवि॑शे य॒ज्ञिया॑य। स्तोमं॑ रु॒द्राय॒ दृशी॑कम्॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

jarābodha tad viviḍḍhi viśe-viśe yajñiyāya | stomaṁ rudrāya dṛśīkam ||

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

जरा॑ऽबोध। तत्। वि॒वि॒ड्ढि॒। वि॒शेऽवि॑शे। य॒ज्ञिया॑य। स्तोम॑म्। रु॒द्राय॑। दृशी॑कम्॥

ऋग्वेद » मण्डल:1» सूक्त:27» मन्त्र:10 | अष्टक:1» अध्याय:2» वर्ग:23» मन्त्र:5 | मण्डल:1» अनुवाक:6» मन्त्र:10


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स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर वह कैसा है, इस विषय का उपदेश अगले मन्त्र में किया है॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे (जराबोध) गुण कीर्त्तन से प्रकाशित होनेवाले सेनापति आप जिससे (विशेविशे) प्राणी-प्राणी के सुख के लिये (यज्ञियाय) यज्ञकर्म के योग्य (रुद्राय) दुष्टों को रुलानेवाले के लिये सब पदार्थों को प्रकाशित करनेवाले (दृशीकम्) देखने योग्य (स्तोमम्) स्तुतिसमूह गुणकीर्त्तन को (विविड्ढि) व्याप्त करते हो, (तत्) इससे माननीय हो॥१०॥
भावार्थभाषाः - इस मन्त्र में पूर्णोपमालङ्कार है। युद्धविद्या के जाननेवाले के गुणों को श्रवण करे विना इस का ज्ञान नहीं होता और जो प्रजा के सुख के लिये अतितीक्ष्ण स्वभाववाले शत्रुओं के बल के नाश करनेहारे भृत्यों को अच्छी शिक्षा दे कर रखता है, वही प्रजापालन में योग्य होता है॥१०॥
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स्वामी दयानन्द सरस्वती

पुनः स कीदृश इत्युपदिश्यते॥

अन्वय:

हे जराबोध सेनाधिपते ! त्वं यस्माद् विशेविशे यज्ञियाय रुद्राय दृशीकं स्तोमं विविड्ढि तत्तस्मान्मानार्होऽसि॥१०॥

पदार्थान्वयभाषाः - (जराबोध) जरया गुणस्तुत्या बोधो यस्य सैन्यनायकस्य तत्सम्बुद्धौ (तत्) तस्मात् (विविड्ढि) व्याप्नुहि। अत्र वा छन्दसि सर्वे विधयो भवन्ति इति नियमात्। निजां त्रयाणां गुणः० (अष्टा०७.४.७५) अनेनाभ्यासस्य गुणनिषेधः। (विशेविशे) प्रजायै प्रजायै (यज्ञियाय) यज्ञकर्मार्हतीति यज्ञियो योद्धा तस्मै। अत्र तत्कर्मार्हतीत्युपसंख्यानम्। (अष्टा०वा०५.१.७१) अनेन वार्त्तिकेन यज्ञशब्दाद् घः प्रत्ययः (स्तोमम्) स्तुतिसमूहम् (रुद्राय) रोदकाय (दृशीकम्) द्रष्टुमर्हम्। अत्र बाहुलकादौणादिक ईकन् प्रत्ययः। किच्च। यास्कमुनिरिमं मन्त्रमेवं समाचष्टे। जरा स्तुतिर्जरतेः स्तुतिकर्मणस्तां बोधय तया बोधयितरिति वा। तद्विविड्ढि तत्कुरु। मनुष्यस्य मनुष्यस्य वा यज्ञियाय स्तोमं रुद्राय दर्शनीयम्। (निरु०१०.८)॥१०॥
भावार्थभाषाः - अत्र पूर्णोपमालङ्कारः। नैव धनुर्वेदविदो गुणश्रवणेन विनाऽस्य बोधः सम्भवति, यः प्रजासुखाय तीक्ष्णस्वभावान् शत्रुबलहृद्भृत्यान् सुशिक्ष्य रक्षति, स एव प्रजापालो भवितुमर्हति॥१०॥
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माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - या मंत्रात पूर्णोपमालंकार आहे. युद्धविद्येच्या जाणकाराचे गुण श्रवण केल्याशिवाय त्याचे ज्ञान होत नाही व जो प्रजेच्या सुखासाठी तीक्ष्ण स्वभावाच्या शत्रूंच्या बलाचा नाश करणाऱ्या सेवकांना चांगले शिक्षण देतो तोच प्रजेचे पालन करण्यायोग्य असतो. ॥ १० ॥